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ललितपुर न्यूज:- अहिंसा सेवा संगठन के संस्थापक विशाल जैन पवा ने दसलक्षण/ पर्यूषण महापर्व के महत्व पर प्रकाश डालाआदर्श या स्वतंत्र अवस्था में आत्म कल्याण और मोक्ष मार्ग प्रशस्त करने के लिए अपनाये जाने वाले धार्मिक गुणों को दशलक्षण धर्म कहा जाता है।परिणामों की विशुद्धि बढ़ाने के लिए समता भाव को धारण कर करुणा, दया, परोपकार की भावना को जागृत करना ही धर्म है।

ललितपुर न्यूज:- अहिंसा सेवा संगठन के संस्थापक विशाल जैन पवा ने दसलक्षण/ पर्यूषण महापर्व के महत्व पर प्रकाश डाला

आदर्श या स्वतंत्र अवस्था में आत्म कल्याण और मोक्ष मार्ग प्रशस्त करने के लिए अपनाये जाने वाले धार्मिक गुणों को दशलक्षण धर्म कहा जाता है।

परिणामों की विशुद्धि बढ़ाने के लिए समता भाव को धारण कर करुणा, दया, परोपकार की भावना को जागृत करना ही धर्म है।

ललितपुर। आज दिनांक 23 अगस्त 2020 से जैन धर्माबलम्बियों के भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की पंचमी से पर्यूषण महापर्व प्रारम्भ हो रहे हैं। जिसको दृष्टिकोण रखते हुए ऑनलाइन बेविनार में अहिंसा सेवा संगठन के संस्थापक विशाल जैन पवा ने इसके महत्व पर प्रकाश डालते हुए बताया कि पर्यूषण महापर्व वर्ष में तीन बार चैत्र, माघ एवं भाद्रपद मास में होते हैं। दिगम्बर जैन धर्म के अनुयायियों द्वारा आदर्श या स्वतंत्र अवस्था में आत्म कल्याण और मोक्ष मार्ग प्रशस्त करने के लिए अपनाये जाने वाले धार्मिक गुणों को दशलक्षण धर्म कहा जाता है। इसके अनुसार जीवन में सुख-शांति एवं आत्मा के कल्याण के लिए उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच, सत्य, संयम, तप, त्याग, अाकिंचन और ब्रह्मचर्य आदि दशलक्षण धर्मों का पालन हर मनुष्य को श्रावक धर्म का पालन करना चाहिए। जैन महान ग्रन्थ तत्त्वार्थ सूत्र में 10 धर्मों का वर्णन है, दसलक्षण पर्व में इन दस धर्मों को धारण किया जाता है।
इसमें उत्तम क्षमा पहला दिन होता है, इस दिन ऋषि पंचमी के रूप में भी मनाया जाता है। क्रोध मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है, जिस पर विजय प्राप्त कर उत्तम क्षमा धर्म आत्मा को सही राह खोजने में और क्षमा को जीवन और व्यवहार में लाना सिखाता है, जिससे सम्यक दर्शन प्राप्त होता है।
उत्तम मार्दव पर्वाधिराज पर्यूषण दसलक्षण पर्व का दूसरा दिन होता है जिसमें हमें बोध होता है कि धन, दौलत, शान और शौकत ये सभी चीजें नाशवान हैं। ये सभी चीजें एक दिन हमें छोड देंगी या फिर हमें एक दिन इन चीजों को छोडना ही पडेगा, नाशवंत चीजें इन्सान को अहंकारी और अभिमानी बना देती हैं, ऐसा व्यक्ति दूसरों को छोटा और अपने आप को सर्वोच्च मानता है। इससे बेहतर है कि अभिमान को छोडा जाये और जीवन में विनम्रता का भाव लाएँ। सभी जीवों के प्रति मैत्री-भाव रखें, क्योंकि सभी जीवों को अपना जीवन जीने का अधिकार है।
उत्तम आर्जव पर्यूषण दसलक्षण पर्व का तीसरा दिन होता है, जो हमें बताता है कि सभी को सरल स्वभाव रखना चाहिए, मायाचारी और कपट का त्याग करना चाहिए। मायाचारी के भ्रम में जीना दुखी होने का मूल कारण है। उत्तम आर्जव धर्म हमें सिखाता है कि मोह-माया, बुरे कर्म सब छोड़ कर सरल स्वभाव के साथ परम आनंद मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं।
उत्तम शौच अष्टमी को पर्यूषण दसलक्षण पर्व का चौथा दिन होता है, जो हमें लोभ न करने की प्रेरणा देता है, बेहतर है कि हम अपने पास जो कुछ है, उसके लिए परमात्मा का शुक्रिया अदा करें और सन्तुष्टि जीव बनकर उसी में काम चलायें। भौतिक संसाधनों और धन- दौलत में खुशी खोजना यह महज आत्मा का एक भ्रम है। उत्तम शौच धर्म हमें यही सिखाता है कि शुद्ध मन से जितना मिला है, उसी में खुश रहो। इस प्रकार पर्यूषण पर्व के प्रथम चार दिन में हम चरों प्रकार की कषाय क्रोध मान माया लोभ को छोड़कर कलुषित आत्मा को पवित्र करते हैं।
उत्तम सत्य पर्यूषण दसलक्षण पर्व का पाँचवाँ दिन होता है, झूठ बोलना बुरे कर्म में बढोत्तरी करता है। सत्य जो 'सत' शब्द से आया है जिसका मतलब है वास्तविकता से है। उत्तम सत्य धर्म हमें यही सिखाता है कि आत्मा की प्रकृति जानने के लिए सत्य आवश्यक है और इसके आधार पर ही परम आनंद मोक्ष को प्राप्त करना मुमकिन है। अपने मन के भावों को सरल और शुद्ध बना लें तो सत्य अपने आप ही आ जाएगा।
उत्तम संयम सुगंध दशमी को पर्यूषण दसलक्षण पर्व का छठा दिन होता है, इस दिन को धूप दशमी के रूप में मनाया जाता है। मंदिर में भगवान के दर्शन के साथ धूप चढा कर खूशबू फैलाते हैं और कामना करते हैं कि इस धूप की तरह ही हमारा जीवन भी हमेशा महकता रहे। आत्मा की विशुद्धि तब ही मुमकिन है जब अपनी इन्द्रियों को विभिन्न प्रलोभनों से मुक्त करें और स्थिर मन के साथ संयम रखें।
उत्तम तप पर्यूषण दसलक्षण पर्व का सातवाँ दिन होता है, तप का मतलब उपवास में भोजन नहीं करना, सिर्फ इतना ही नहीं, बल्कि तप का असली मतलब है कि इन सभी क्रिया-कलापों के साथ अपनी इच्छाओं और ख्वाहिशों को वश में रखना। ऐसा तप अच्छे गुणवान कर्मों में वृद्धि करता है। तीर्थंकरों जैसी तप-साधना करना वर्तमान समय में शायद संभव नहीं है, पर हम भी ऐसी ही भावना रखते हुए पर्यूषण पर्व के 10 दिनों के दौरान व्रत उपवास कर उनकी राह पर चलने का प्रयत्न करते हैं।
उत्तम त्याग पर्यूषण दसलक्षण पर्व का आठवाँ दिन होता है, 'त्याग' शब्द से ही ज्ञात होता है कि इसका मतलब छोडना है और जीवन को संतुष्ट बनाकर अपनी इच्छाओं को वश में करना है। छोडने की भावना जैन धर्म में सबसे अधिक है, क्योंकि जैन-संत सिर्फ अपना घर-द्वार ही नहीं,अपने कपड़े भी त्याग देते हैं और पूरा जीवन दिगंबर मुद्रा धारण करके व्यतीत करते हैं। उत्तम त्याग धर्म हमें यही सिखाता है कि मन को संतोषी बनाकर के ही इच्छाओं और भावनाओं का त्याग करना मुमकिन है, त्याग की भावना आंतरिक परिणामों को शुद्ध बनाती है।
उत्तम आकिंचन पर्यूषण दसलक्षण पर्व का नौवाँ दिन होता है, आकिंचन हमें मोह को त्याग करना सिखाता है, जो हमें बोध कराता है कि आत्मा पवित्र है, किंचित मात्र भी उसका किसी से कोई सम्बन्ध नहीं है। सभी मोह, प्रलोभन और परिग्रह को छोडकर ही परम आनंद मोक्ष को प्राप्त करना मुमकिन है।
उत्तम ब्रह्मचर्य भाद्रमाह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को दिगंबर जैन समाज के पर्यूषण दसलक्षण पर्व का दसवाँ दिन होता है, इस दिन को अनंत चतुर्दशी कहते हैं। ब्रह्मचर्य हमें सिखाता है मोह, वासना ना रखते हुए सादगी से जीवन व्यतीत करना एवं उन परिग्रहों का त्याग करना, जो हमारे भौतिक संपर्क से जुडी हुई हैं। ब्रह्म जिसका मतलब आत्मा, और चर्या का मतलब रहना, इसको मिलाकर ब्रह्मचर्य शब्द बना है, ब्रह्मचर्य का मतलब अपनी आत्मा में रहना है।
क्षमावाणी, अनंत चतुर्दशी के दूसरे दिन मंदिर में सभी लोग, भक्त-जन एक साथ प्रतिक्रमण करते हुए पूरे साल मे किये गए पाप और कटु वचन से किसी के दिल को जाने-अनजाने ठेस पहुंची हो, तो उसके लिए एक-दूसरे को क्षमा करते हैं और एक-दूसरे से क्षमा माँगते है और हाथ जोड कर गले मिलकर उत्तम क्षमा कहते हैं। जो लोग उपस्थित नहीं होते, उनसे दूसरे दिन क्षमा-याचना करते हैं। हम उनसे क्षमा मांगते हैं, जिनके साथ हमने बुरा व्यवहार किया हो और उन्हें क्षमा करते हैं, जिन्होंने हमारे साथ बुरा व्यवहार किया हो। सिर्फ इन्सानों के लिए ही नहीं, बल्कि हर एक- इन्द्रिय से पंच- इन्द्रिय जीवों के प्रति भी ऐसा ही क्षमा-भाव रखते हैं। इससे निष्कर्ष निकलता है कि पूजा, विधान, स्वाध्याय, जप, व्रत उपवास केवल धार्मिक क्रियाएँ हैं जबकि परिणामों की विशुद्धि बढ़ाने के लिए समता भाव को धारण कर करुणा, दया, परोपकार की भावना को जागृत करना ही धर्म है।

        प्रदेश ब्यूरो
इन्द्रपाल सिंह की रिपोर्ट

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